ख़ुद को अपने से अलग कर, जब कभी सोचूँ हूँ मैं
ख़ुद को अपने से अलग कर, जब कभी सोचूँ हूँ मैं दूर तक, बस दूर तक बिखरा हुआ पाऊँ हूँ मैं लम्हा-लम्हा फूटता है, मुझमें इक ज्वालामुखी अपने एहसासात की ही आँच में झुलसूँ हूँ मैं हाँ वो सूरज है मगर मैं भी तो उससे कम नहीं रोज़ निकलूँ हूँ सुबह को, शाम … Continue reading ख़ुद को अपने से अलग कर, जब कभी सोचूँ हूँ मैं
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